Saturday, August 21, 2010

कहां जाए मां-बहन-बेटियां?

अहिल्या की नगरी की मां-बहन-बेटियां क्या अब अपने परिवार वालों के साथ भी महफूज नहीं? क्या अब पलासिया, रेसकोर्स रोड, ए.बी. रोड, सपना-संगीता रोड, एलआईजी, ग्र्रेटर कैलाश रोड, एयरपोर्ट रोड बियाबान जंगल का हिस्सा हो गए? बिजासन माता की टेकरी बीहड़ में तो नहीं और न रालामंडल घने जंगलों के बीच? चौरल, रालामंडल, तिंछाफाल, सीतलामाता फाल जैसे शहर के दूरदराज इलाके की तो बात ही नहीं कर रहे। फिर क्या कारण है कि अब बीच शहर में ही भले घर की मां..बहन..बेटियों के साथ शर्मसार करने वाली छेड़छाड़ हो रही है और वह भी सरेराह। हरकत करने वालों के हौसले इस कदर खुल गए है कि वे अब यह भी नहीं देखते ही पति साथ है या भाई या पिता। हरकत की और निकल लिए..अब आप पछताओं या शर्मिंदा हो तो हो। रिपोर्ट लिखा नहीं सकते और लिखा दी तो होना क्या? बड़े डकैत और हत्यारे तो गिरफ्त से बाहर है, फिर औछी हरकत कर भाग निकले बिगड़ैलों के लिए कौन पसीना बहाएंगा?
यह सब हो रहा है उस इंदौर में जिसकी रातें घूमने-फिरने के लिए समूचे देश में ख्यात है। और अब...रात के स्याह होने के साथ ही अब उपर लिखी सड़कों पर हड़दंगियों के हरकत भरे यह नजारे आम हो जाते है। इन्हें कोई रोकने वाला नहीं। कई बार तो इनके हाथ में शराब की बोतले भी होती है। कहने को इस शहर में 'काबिंगÓ भी होती है और 'कोबरेÓ भी घूमते है लेकिन जब यह घटना होती है तब यह 'कोबरेÓ न जाने किस 'डोबरेÓ में रहते है और पुलिस न जाने किसकी लॉबिंग में।
नहीं तो क्या कारण है कि पुलिस को आधी-आधी रात तक तेज आवाज में म्युजिक बजाते वाहन और उन पर सवार नौजवान नहीं दिखते? कार तो दूर...सन्नाटा होने के बाद ऑटो रिक्शा तक में धुए के छल्ले उड़ाते हुड़दंगी नजर आते है। रीगल और शास्त्री ब्रिज व पलासिया जैसे इलाकों से भी अब आप अपने परिवार के साथ देर रात बै-खोफ नहीं आ-जा सकते। क्या जाने कब ऐसे हरकतबाजों का ग्र्रुप आपके नजदीक से हरकत करते गुजर जाए और आप देखते ही रह जाए। कुछ युवाओं के समूह ने इसे शगल बना लिया है और वे इसी ताक में रात को 'शिकारÓ के लिए निगलते है। कुछ बोला तो फिर वहीं हश्र होना है जो दो दिन पहले बिजासन गए जैन परिवार के पुरुषों के साथ हुआ। क्या गलती थी उनकी? अपने परिवार की महिलाओं के साथ होने वाली हरकतों का विरोध ही तो किया था उन्होंने। क्या सजा मिली? अब भी इस शहर के बाशिंदे नहीं जागे तो फिर यह कहना भूल जाना कि हमारे इंदौर में तो जेवर पहनकर भी महिला आधी रात को कहीं आ-जा सकती है...।

2 comments:

  1. ऐसा ही रहा तो इन्दौर मेहनती और सज्जन लोगों के रहने लायक नहीं रह जाएगा।

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  2. सही बात तो यह है कि बागड ही खेत खाने लगे, तो समस्या के हल मे मुशिकल तो आनी ही है...(बागड यानी ये सरकार, नेता, पुलिस)... और आपको तो सब मालूम है साब...

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